Raat ke 11baje - 1 in Hindi Fiction Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | रात के ११बजे - भाग - १

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रात के ११बजे - भाग - १

आत्म कथ्य

नारी ईश्वर की इस सृष्टि की संचालन कर्ता भी है और इसकी गतिशीलता का आधार भी। नारी से मेरा तात्पर्य जीव-जन्तु पेड़-पौधों में उपस्थित नारी तत्व से भी है। मानव के संदर्भ में जब हम नारी को देखते हैं तो उसके दोनों रुप हमारे सामने आते हैं एक सृजनकर्ता के रुप में और दूसरा संहारक के रुप में। उसका सृजनात्मक स्वरुप मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में दिखलाई देता है तो उसके संहारक स्वरुप ने अनेक युद्ध भी कराये हैं और विकृतियां व वीभत्सता भी दी है। आज समाज में जितने अपराध हो रहे हैं उनमें भी उसकी बराबर की भूमिका देखने को मिलती है।

सामाजिक जीवन में नारी के इन्हीं दो रुपों को चित्रित करने के लिये मैंने दो पात्रों की कल्पना की और ये दो नारी पात्र नारी के दो रुपों को दर्शाते हैं। इसमें मुझे कहां तक सफलता मिली है यह तो पाठक ही निर्धारित करेंगे। इसकी रचना में श्री अभय तिवारी से हुआ मेरा विचार विमर्श महत्वपूर्ण रहा है और कथा क्रम को सुगठित आकार देने में सहायक रहा।

मेरा यह प्रयास समर्पित है उस वन्दनीय नारी समाज को जो समाज की गतिशीलता की धुरी है।

राजेश माहेश्वरी

106, नयागाँव हाउसिंग सोसायटी

जबलपुर, म. प्र. (482002 )

कल-कल बहती नर्मदा का तट, आसमान पर छाये हुए काले-काले बादल, हल्की-हल्की फुहार और धीमे-धीमे बह रही ठण्डी-ठण्डी हवा। ऐसे मनभावन मौसम में किसका मन प्रफुल्लित एवं आनन्दित नहीं होगा। वहीं गौरव चुपचाप चट्टान पर बैठा विचारों में खोया हुआ। स्वयं ही अपने से बोल रहा था। मेरी गलती क्या थी? आनन्द मेरा मित्र था, एक खानदानी करोड़पति था। मैं तो उसे हमेशा उचित सलाह दिया करता था। यह सोचते-सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गये। तभी उसके कन्धे पर राकेश ने हाथ रखा और उसे सांत्वना देते हुए कहा- एक दिन सभी को जाना है। मौत तो आना ही है। अब वह किस बहाने से आती है, यह एक अलग बात है। कल हम भी नहीं रहेंगे। हमें कितने लोग कांधा देंगे और कितने आंसू बहाएंगे यह कोई नहीं जानता। हमने जिनका हित किया है या जिनकी सहायता की है, हो सकता है वे भी हमें कांधा न लगाएं। तन तो आत्मा का घर है। इसमें वह कुछ दिन रहकर चली जाएगी। यही जीवन की वास्तविकता है।

गौरव को पुराने दिन याद आ रहे थे। आनन्द और राकेश उसके अच्छे मित्र थे। आपस में भी वे एक दूसरे के मित्र थे। गौरव का झुकाव आनन्द की ओर अधिक था। गौरव स्वयं एक कंजूस प्रवृत्ति का स्वामी था। आनन्द खुले हाथ से खर्च करता था। आनन्द से गौरव का परिचय राकेश के माध्यम से ही हुआ था, परन्तु आनन्द के साथ गौरव अधिक सुविधाजनक अनुभव करता था। आनन्द और राकेश दोनों ही सम्पन्न परिवारों से थे। दोनों ही अपनी-अपनी संपत्ति का बंटवारा अपने बच्चों और पत्नी के बीच कर चुके थे। उनके परिवारों में सभी की अपनी सम्पत्ति थी और सभी के अपने-अपने काम थे।

गौरव और आनन्द एक दिन बात कर रहे थे। आनन्द कह रहा था कि मेरा जीवन तो जैसे रेगिस्तान हो गया है। नारी के बिना पुरूष का जीवन नीरस और अपूर्ण होता है। पुरूष के जीवन को उसकी जीवन संगिनी ही सरस और पूर्ण बनाती है। किन्तु कभी-कभी किसी की जीवन संगिनी उसके जीवन की सरसता को समाप्त कर उसकी अपूर्णता को गहरा कर देती है। उस स्थिति में उस पुरूष का जीवन उस मशीन सा हो जाता है जिसे चलाया तो जा रहा है, लेकिन जिसकी तेल-पानी और सफाई कभी न की जाती हो। मुझे लगता है मेरा जीवन ऐसा ही है।

इस बात को मेरी पत्नी नहीं समझती। वह धर्म-कर्म में ऐसी लीन रहती है कि उसे इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि मुझे भी उसकी आवश्यकता है। मैं भी अपने व्यक्तिगत जीवन में उससे बात करना चाहता हूँ। उसकी सलाह लेना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि जीवन के हर मोड़ पर वह मुझे मेरे साथ दिखलाई दे किन्तु ऐसा नहीं है। उसके इस व्यवहार ने मेरे जीवन को रेगिस्तान बना दिया है। मुझे लगातार किसी महिला साथी की कमी जीवन में महसूस होती है। उसकी बात सुनकर गौरव ने कहा- राकेश के रहते हुए इस बात की क्या चिन्ता। वह एक सामाजिक, मिलनसार और व्यवहार कुशल व्यक्ति है। उसके सामाजिक दायरे में सभी हैं। फिर वह तुम्हारा भी तो मित्र है। उसके साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाओगे तो तुम्हारे जीवन का हर अभाव स्वमेव ही दूर हो जाएगा।

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राकेश को अपने निजी कार्य से दिल्ली जाना था। उसके साथ गौरव भी जा रहा था। राकेश बहुत थका हुआ था। वह सोने जा रहा था। उसने गौरव से कहा- यार मुझे झांसी में उठा देना। एक आवश्यक कार्य है। गौरव ने पूछा- वहां कौन सा काम आ गया।

वह मैं तुम्हें बाद में बताउंगा। इतना जता कर वह सो गया। जब रेल झांसी पहुँची तो रात के ग्यारह बज रहे थे। गौरव ने देखा कि एक सभ्रान्त और सुन्दर महिला ने प्रवेश किया और राकेश के पास आकर बैठ गई। राकेश ने तत्काल एक लिफाफा निकालकर उसे दिया। वह लिफाफा लेकर उसका अभिवादन करके चली गई।

गौरव ऊपर की बर्थ से नीचे आ गया। उसने राकेश से पूछा- यह कौन थी?

एक महिला थी।

वह तो मैं भी जानता हूँ। लेकिन वह थी कौन ?

राकेश ने कहा- अभी मुझे बहुत नींद आ रही है। सुबह होने दो, सुबह मैं तुम्हें विस्तार से सब कुछ बतलाउंगा। उसकी बात सुनकर गौरव चुप रह गया। वह अपनी बर्थ पर चला गया। राकेश ने सोने के लिये मुंह ढांप लिया और आंखों को बंद कर लिया। वह नींद के आगोश में समा रहा था। उसने अनुभव किया कि उसके कान के पास आकर कोई कह रहा था- आज मेरे हाथों में मेंहदी लगा दो। राकेश ने उसे देखा। उसे देखते-देखते ही वह अतीत की गहराइयों में खो गया।

गौरव ने चार-पांच वर्ष पूर्व किसी पारिवारिक आयोजन में अनीता को देखा था। वह अनीता की सुन्दरता से प्रभावित हुआ था। एक दिन वह राकेश के साथ था तब किसी बात पर उसने राकेश से कहा था- आज अपने नगर की सबसे सुन्दर महिला अगर कोई है तो वह अनीता है। उसे देखोगे तो देखते रह जाओगे। उसने उसकी सुन्दरता का जितना अच्छे से अच्छा वर्णन वह कर सकता था, वह किया। उसके बाद उसने राकेश से यह भी कहा कि अगर तुम कर सको तो उससे मित्रता करके बताओ। राकेश ने उसकी इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। उसने गौरव से कहा कि तुम्हें इसमें मेरी थोड़ी सी मदद करना पड़ेगी। गौरव राजी हो गया। यह पता लगने पर कि अनीता एक आर्कीटेक्ट है, उसने गौरव को यह कहकर अनीता के पास भेजा कि उसे अपने घर की साज-सज्जा को बदलना है।

अनीता काफी सुन्दर और आकर्षक थी। गौरव उसके पास गया और उसने उससे राकेश के बंगले की साज-सज्जा को संवारने की बात की। उसने यह भी बतलाया कि इस पर लगभग एक करोड़ रूपयों का संभावित खर्च किया जाना है। एक अच्छे व्यापारी के समान एक अच्छे ग्राहक के प्रस्ताव से अनीता काफी खुश हुई और गौरव के लिये तत्काल चाय बुलवाई गई। उसने पूछा कि वे क्या-क्या परिवर्तन चाहते हैं। इस पर गौरव ने उससे कहा कि आप उनसे सीधे बात कर लें।

इधर राकेश को भी चैन नहीं था और उसने कार्य की प्रगति जानने के लिये गौरव को फोन किया। गौरव ने फोन सीधे अनीता को दे दिया कि आप जो भी जानकारी चाहती हैं विस्तार पूर्वक ले लें।

अनीता ने राकेश से बात की। उसने राकेश से उसके घर के विषय में, उसके परिवार के सदस्यों के विषय में, उनकी अपेक्षाओं के विषय में बात की। फिर उसने राकेश से कहा कि जब तक मैं आपका घर नहीं देख लेती तब तक आपसे आगे बात करना उचित नहीं होगा, क्योंकि उसके बाद ही वह काम के विषय में कुछ कह पाएगी। राकेश ने गौरव से कहा कि इन्हें घर लाकर सब कुछ बतला दो।

अगले दिन अनीता गौरव के साथ राकेश के घर गई। वहां उसकी राकेश से भी मुलाकात हुई। राकेश ने उसे देखा तो देखता ही रह गया। वह वास्तव में बहुत सुन्दर थी। हल्का गेंहुआ गोरा रंग, गोल चेहरा, सुतवां नाक, पतले गुलाबी होंठ, इकहरा बदन, रेशमी घने हल्के भूरे बाल, सलीके से पहला हुआ परिधान, गले में मोतियों की चेन, छोटे-छोटे कर्णफूल और इस पर चार-चांद लगाती हुई उसकी मीठी आवाज। राकेश को उसकी इस सुन्दरता का अनुमान नहीं था। गौरव ने जितनी प्रशंसा की थी वह उससे बढ़कर थी। राकेश अपना आपा खो चुका था। वह उसका साथ नहीं छोड़ना चाहता था पर ऊपर से अपने को अप्रभावित दर्शाते हुए वह उसे घर पर छोड़कर अपने कार्यालय चला गया।

अनीता ने पूरे घर का बारीकी से मुआयना किया फिर अपने कार्यालय आकर इस विषय पर काम करना और नक्शे आदि बनाना प्रारम्भ कर दिया। जब वह पूरी रुपरेखा तैयार कर चुकी तो उसने राकेश को फोन लगाकर इस की विस्तृत जानकारी दी और प्रारूप तैयार करने व आवश्यक चर्चा करने के लिये उससे समय मांगा। राकेष ने शाम को किसी रेस्टारेन्ट में मिलने का अनुरोध किया। जिस पर उसने अपनी सहमति दे दी।

नियत समय पर अनीता अपने असिस्टेण्ट के साथ वहां पहुंच गई। राकेश भी गौरव को साथ लेकर वहां पहुंचा। गौरव ने अजीबो-गरीब कपड़े पहने हुए थे। उसने कोट कहीं का, पेण्ट कही का, टाई कहीं की और शर्ट कहीं की पहनी हुई थी। कुल मिलाकर वह माडर्न आर्ट के किसी कोलाज सा दिख रहा था।

गौरव ने अनीता से कहा- मैं आपको इस नगर के नगरसेठ से परिचित करवा रहा हूँ। आप इनके मन के अनुरूप बंगले का आधुनिकीकरण करा दें तो इनका काम हो जाएगा और शहर में आपका नाम भी हो जाएगा। अनीता बोली कि समय लग सकता है किन्तु अपना काम मैं पूरी लगन व मेहनत से करूंगी और मुझे विश्वास है कि उससे इन्हें भी संतुष्टि मिलेगी।

राकेश और अनीता के बीच घर की साज-सज्जा पर लम्बी बातचीत हुई। राकेश उसकी बातचीत और उसकी योग्यता से भी प्रभावित हुआ। उन दोनों के बीच गम्भीर एवं लम्बी चर्चा के बाद घर की साज-सज्जा के विषय में सारी बातें तय हो गईं। उसने इस काम में लगने वाले अनुमानित खर्चों का ब्यौरा भी दिया जिसे राकेश ने स्वीकार कर लिया।

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घर का आधुनिकीकरण का काम प्रारम्भ हो चुका था और इस सिलसिले में अनेक बार अनीता का आगमन होता था। राकेश के साथ उसकी समय समया पर बातचीत भी होती रहती थी। जिस प्रकार राकेश अनीता से प्रभावित था उसी प्रकार अनीता भी राकेश से प्रभावित थी।

एक दिन राकेश ने उससे कहा कि मैं आपसे अपने एक और प्रोजेक्ट पर चर्चा करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आज शाम को हम कहीं बैठकर इत्मीनान से उस पर बात करें। अनीता की सहमति के बाद उस शाम को राकेश और अनीता कोहनूर रेस्तरां में मिले। उनके साथ गौरव और अनीता का सहायक भी था।

राकेश ने औपचारिकतावश पूछा- आप व्हिस्की, चाय, जूस आदि क्या लेंगी? अनीता ने संकोच के साथ कहा कि कभी-कभी मैं साथ देने के लिये व्हिस्की ले लेती हूँ। इसके बाद तीन जगह व्हिस्की और एक जगह बियर बुलवाई गई। इसी बीच राकेश ने अनीता को बतलाया कि नगर की सीमा में उसकी लगभग पच्चीस एकड़ जमीन है। वह उस पर एक हाउसिंग प्रोजेक्ट तैयार करना चाहता है। वह चाहता है कि उसका प्रोजेक्ट ऐसा हो कि नगर में वह अपनी अलग पहचान बनाये। अनीता ने कहा कि आप उसके पेपर्स और नक्शे आदि मुझे दीजिये मैं उस पर काम करके आपको योजना तैयार करके दूंगी।

वे एक दूसरे को देख रहे थे। राकेश ने मौका देखकर अपना हाथ अनीता के हाथ पर रख दिया। अनीता मुस्कराई और उसने अपना हाथ धीरे से हटा लिया। उसकी मुस्कराहट राकेश के प्रस्ताव का जवाब दे गई थी। गौरव बियर पी रहा था उसे सुरुर चढ़ने लगा था। वह अनीता को संबोधित करके बताने लगा- मैं एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर का कलाकार हूँ। मेरी पेटिंग्स की एग्जीवीशन अमेरिका और इंग्लैण्ड में भी लग चुकी हैं। मेरे पास अन्तरराष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड है। यह कहते हुए उसने अपना कार्ड निकालकर अनीता के हाथों में रख दिया। राकेश जो गौरव की हांकने की आदत से वाकिफ था उसने गौरव से नजर बचाकर धीरे से अनीता से कहा कि क्रेडिट कार्ड की तारीख भी देख लो। अनीता ने देखा कि वह कार्ड तो दो साल पहले ही एक्सपायर हो चुका था। आज वह केवल एक कागज का टुकड़ा ही था। यह देखने के बाद अनीता राकेश की ओर देखते हुए मुस्करा उठी। इस मुस्कराहट ने उन्हें एक-दूसरे के और भी पास ला दिया।

उसकी असिस्टेण्ट तो डिनर लेकर चली गई पर गौरव अभी भी बैठा हुआ था और लगातार अपनी हांक रहा था। उसकी बातों से दोनों ही ऊब रहे थे। आंखों ही आंखों में दोनों में कुछ बात हुई और वे दोनों बाहर आकर कार में बैठकर गौरव को साथ में लेकर चल दिये। वे गौरव के घर गये और उसे घर छोड़कर वापिस रेस्टारेण्ट आ गये। एक बार फिर व्हिस्की का दौर प्रारम्भ हो गया। उनके बीच संकोच की दीवारें एक-एक करके ढहती जा रही थीं, वे खुलकर एक दूसरे से बात कर रहे थे। इसी बीच अनीता ने राकेश से पूछा- आपने इतनी कम उम्र में इतनी तरक्की कैसे कर ली।

राकेश पर एक तो अनीता के रुप का नशा था, फिर उसके प्यार का नशा था और उस पर व्हिस्की का नशा। वह खोया-खोया कहने लगा- आदमी अपनी असफलताओं के लिये अपने भाग्य को कोसता है। वह यह विचार नहीं करता कि भाग्य उसका दुश्मन नहीं है, वह तो उसका मित्र है। प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। उसका सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है। यदि हमारे कर्म सकारात्मक हों तो भाग्य भी हमारा साथ देता है। आस्था, विश्वास और नैतिकता जीवन के आधार स्तम्भ हैं। उनके बिना जीवन उस वृक्ष के समान है, जिसके सारे पत्ते झड़ चुके हों। वह असहाय सा सिर्फ अपने तने पर खड़ा हो और अपने गिरने की प्रतीक्षा कर रहा हो। हमारे जीवन की दिशा ऐसी होना चाहिए कि हम अपने सद्कर्मों से भाग्य के सहारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें।

उस दिन राकेश और अनीता देर रात तक साथ रहे। वे एक दूसरे के बहुत करीब आ गए थे। दोनों के रोम-रोम में तरंगे उठ रहीं थीं। दोनों अनेक बार एक दूसरे को आलिंगन में ले चुके थे। एक दूसरे के प्रति अपने चुम्बनों से अपने प्यार का इजहार कर चुके थे। वे एक दूसरे में खोये हुए थे। वे हमेशा उसी स्थिति में रहना चाहते थे लेकिन, घड़ी के कांटे आगे बढ़ते जा रहे थे। आधी रात को राकेश उसे उसके घर छोड़ने गया और फिर उसके खयालों में खोया-खोया ही वापिस लौटा।

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एक दिन राकेश अनीता के आमन्त्रण पर उसके घर डिनर पर गया। घर पर अनीता और उसके दो नौकर ही थे। अब तक अनीता उसके इतने करीब आ गई थी कि उसके मन में उसके निजी जीवन में झांकने की लालसा पैदा हो गई थी। राकेश ने बातों ही बातों में उसके पति के विषय में चर्चा प्रारम्भ की। अनीता काफी भावुक हो गई। उसके रुप की, उसके प्यार की और उसके स्वाभिमान की उपेक्षा का दर्द उसके चेहरे पर आ गया। उसने बताया कि उसके पति ने उसके साथ धोखा और बेवफाई की। वह अपनी प्रेमिका को लेकर शारजाह चला गया था। एक वर्ष तक वहां रहा। उसके बाद अपने काम में असफल होने के कारण वह भारत वापिस आ गया। अनीता ने अपने पति से तलाक लेने का मन बना लिया था। उसके वापिस आ जाने और माफी मांगने के कारण उसने ऐसा नहीं किया। लेकिन इस घटना ने उसके मन में एक टीस तो पैदा कर ही दी थी। उसे ये दिन बहुत कठिनाई में काटना पड़े थे। यह बताते-बताते वह काफी विचलित हो गई थी।

राकेश ने उसे सांत्वना देते हुए कहा- जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आयें हमें मन और मस्तिष्क को स्थिर रखते हुए चिन्तन-मनन के साथ सही राह की खोज करनी ही पड़ती है। यही जीवन है। रूको, देखो और आगे बढ़ो।

बातों का क्रम चलता रहा और वे डाइनिंग टेबल पर आ गये। डिनर लेते हुए उनमें कोई खास बात नहीं हुई पर डिनर के बाद जब वे बैठे तो राकेश ने उससे कहा- जीवन में जैसा संघर्ष तुमने किया है कुछ-कुछ वैसा ही जीवन को मैंने भी देखा है। एक समय मेरे सामने भी अंधेरा था। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए। सारा व्यापार, सारा उद्योग बरबादी के कगार पर खड़ा था। अपनों ने भी मुंह फेर लिया था। बहुत संघर्ष के बाद सारी स्थितियां संभली और आज मैं इस मुकाम पर हूँ जिसे तुम देख रही हो और मुझे सफल मान रही हो। वस्तु स्थिति यह है कि सब कुछ होते हुए भी मैं अपने आप को अकेला अनुभव करता हूँ। जब तुम से मिला और परिचय गहरा हुआ तो मुझे लगा कि जैसे जीवन में कोई रिक्तता थी जो भरने लगी है। यह बात मैं तुम से कह नहीं पा रहा था। लेकिन आज जब तुम ने अपने मन की बात खुलकर की तो मेरी भी हिम्मत हो गई कि मैं भी अपने मन की बात तुमसे कह दूं।

राकेश की यह बात सुनकर अनीता ने पहले तो नजरें झुका दीं और फिर बात बदलकर वह बोली- आपका यह प्रोजेक्ट काफी बड़ा है। इसे मैं अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रुप में देख रही हूँ। इसके लिये हमें दिल्ली या बम्बई के अच्छे कंस्ट्रक्शन फर्म से बात करनी चाहिए। वे प्रोफेशनल होते हैं और इस पूरे प्रोजेक्ट को अच्छे से समझ कर उचित मार्गदर्शन देंगे। राकेश को भी यह बात उचित प्रतीत हुई और उसने इसके लिये अपनी सहमति दे दी। यह भी तय हुआ कि इसके लिये दिल्ली जाना अधिक लाभदायक रहेगा। रात अधिक हो चुकी थी, घर के नौकर भी इस प्रतीक्षा में थे कि कब विश्राम मिलेगा? इसलिये राकेश ने अनीता से घर जाने की इजाजत मांगी। वह उसे द्वार तक छोड़ने आयी। विदा होने से पहले दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में भर लिया। राकेश के चुम्बन के उत्तर में अनीता ने भी उसे गर्मजोशी से चूम लिया। आज उनका आलिंगन बहुत गहरा था।

दूसरे दिन राकेश ने ट्रेवलिंग एजेण्ट से बात करके दिल्ली जाने की योजना तय कर ली। तीन दिन बाद वे दोनों साथ-साथ दिल्ली जा रहे थे। दोनों के दिलों में दिल्ली जाने का उतना रोमांच नहीं था जितना साथ-साथ सफर करने का था। ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। ए. सी. के प्रथम श्रेणी के कूपे में दोनों अकेले थे। राकेश कुछ गम्भीर सा था। इसे देखकर अनीता ने पूछा- आज आप इतने गम्भीर से क्यों हैं ? राकेश ने कहा- आज मुझे अपना पहला प्यार बहुत याद आ रहा है ? मैं उसे बहुत चाहता था किन्तु कभी अपने दिल की बात उससे कह नहीं पाया। उसका विवाह दूसरी जगह हो गया और वह चली गई।